ये सच है की पृथ्वी से चाँद तक आकाश के उचाईयो से समुन्द्र के गहराईओं तक हमने बहुत कुछ हासिल कर लिया है। हवा में हवाई जहाज को उड़ते देखना या समुन्द्र तल के गहराईओं में चल रही जलिये जीवन को जानना विज्ञान में चल रही रिसर्च की ही देन है। ज्यादा पीछे जाने की जरुरत नहीं आज से 25-30 वर्ष पहले ही हमारी क्या स्थिति थी यह इस बात से समझी जा सकती है की हमे किसी से बात करनी हो, कहीं हज़ारो किलोमीटर की यात्रा करनी हो या दुनिया के किसी कोने में चल रही कामों का अध्यन करना हो कितना कठिन था पर आज महीनो की यात्रा घंटो में, पलक झपकते किसी से भी बात कर लेना, और दुनिया में चल रही किसी भी स्थान की जानकारी चंद मिनटों में जान लेना आम बात है। इंटरनेट ने जो हमारे साथ किया है उसे हम भूले नहीं भूल सकते। आज इस लेख का आप तक इतनी आसानी से पहुंचना भी इसी का एक उदाहरण है।

 दुनिया के बदलते इस प्रकरण को ही हम विकास का नाम दे देते है। यहाँ तक के चुनाव के समय हम अपने देश के नेताओ के भाषण को भी सुनते है तो उसमे एक बात स्पष्ट रूप से दिखाई देती है वो है उनका जोर-जोर से चिल्ला-चिल्ला कर कहना के अगर वो सत्ता में आते हैं तो नए भारत का निर्माण करेंगे। शहर को स्मार्ट सिटी बनाएँगे। विकास ही विकास करेंगे। हर कोई विकसित देश देखना चाहता है और शायद इसमें कोई बुराई भी नहीं। पर क्या विकास हर समस्या का हल है या फिर विकास बिना किसी समस्या को जन्म दिए मिल जाता है। जब हम विकास से मिले समस्या के समाधान को देखते है तो हमे निश्चित रूप से प्रसन्नता होती है पर क्या हम ये भी देखना चाहते हैं के क्या विकास बिना किसी नई समस्या को जन्म दिए मिल जाता है? क्या हम विकास या आधुनिक दुनिया का दूसरा चेहरा भी देखना चाहते हैं?

मानव की औसत आयु 80 वर्ष से घटकर 60 वर्ष हो गयी है। गुजरता प्रत्येक दिन हमें कोई न कोई नई बीमारी का नाम बता जाता है। पुराने पशु-पक्षी या तो कम हो रहे हैं या गायब। प्रत्येक नए वर्ष के गर्मी का मौसम हमें नया अधिकतम पारा बता जाता है। हवा का प्रदूषित होना, पानी का प्रदूषित होना और इससे अनेक प्रकार की बीमारी होना आम बात है। मनुष्ये मशीन बन चूका है वह अब ख़ुशी के लिए नहीं बल्कि पैसे के लिए जीवित है। इनसब हो रहे घटनाओ का असली कारण क्या है जब हम अध्यन करते हैं तो कहीं न कहीं मनुष्य के बिना सोचे समझे विकास के लिए उठाया गया गलत कदम ही सामने आता है। हमारा आगे बढ़ना गलत नहीं है पर हम किन रास्तों को अपना कर आगे बढ़ते हैं ये महत्पूर्ण है। विकसित होना हम सबका लक्ष्य है और होना भी चाहिए पर क्या इसकी कीमत अपने और आने वाले लोगों के जीवन को दांव पर लगा कर प्राप्त करना है? क्या मनुष्य का अंत कोई और नहीं बल्कि मनुष्य के हाथो ही होना है? क्या पृथ्वी को नष्ट करना ही मनुष्य का अंतरिम लक्ष्य है? ये प्रश्न जटिल जरूर हो सकते हैं पर इनसभी पर विचार करना हमारी प्राथमिकता में होना चाहिए।