ये सच है अब आज़ाद हैं हम
मिट्टी से सुगंध ये आती है
ऐ जान से प्यारे हमवतनों
अभी काम बहुत कुछ बाकी है
आज़ादी पहली मंजिल थी
था हौसला, सब ने साथ दिया
कांटों से भरे इन रास्तों को
ज़ख़्मी पैरों से पार किया
आगे देखा महबूबे नज़र
बैठा वो हमारा साक़ी है
ऐ जान से प्यारे हमवतनों
अभी काम बहुत कुछ बाकी है
जब ढोल नगाड़े बजते थे
तब जूझते थे बंद कमरों में
मंसूबो पर मंसूबे थे
गाँव के वो हों या शहरों में
हम थके नहीं बढ़ते ही चले
के आगे हमारा साथी है
ऐ जान से प्यारे हमवतनों
अभी काम बहुत कुछ बाकी है
ये देश बना इक गुलदस्ता
बदनाम न होने देंगे इसे
मज़हब के नाम पर बांटने का
जो काम करे बस रोको उसे
गर शुरू हुई खाना जंगी
फिर काहे की आज़ादी है
ऐ जान से प्यारे हमवतनों
अभी काम बहुत कुछ बाकी है
बस एक गुज़ारिश है तुमसे
जब कदम उठें हर कौम हो साथ
भूलें मज़हब और जाति को
दिल देश में हो, हांथो में हाथ
तब पता चले इस दुनिया को
यहाँ अब भी नेहरू-गाँधी है
ऐ जान से प्यारे हमवतनों
अभी काम बहुत कुछ बाकी है
सौजन्य :- एनडीटीवी, ओज़ैर रहमान
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